हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक नगरकोट धाम, मां बज्रेश्वरी का मंदिर है जहां पर मक्खन चढ़ता है। मकर संक्रांति को यहां पर विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान शंकर की अर्धांगिनी देवी सत्ती का जब तिरोभाव (देहावसान) हुआ तो भगवान शिव उन्हें अपनी भुजाओं में उठाकर बदहवास होकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे। उन्हें ऐसा करते देख त्रिलोक के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए, जो इस ब्रह्मांड के कई हिस्सों में जाकर गिरे. उन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा मां के वक्ष स्थल का भी हुआ जो कि इसी स्थान पर आकर गिरा, जहां आज मां का भव्य मंदिर कोट कांगड़े के नगरकोट धाम वाली मां बज्रेश्वरी देवी के नाम से देश-दुनिया में मशहूर है।

यूं तो मां बज्रेश्वरी देवी के चमत्कारों से ये धाम भरा पड़ा है। बावजूद इसके उन्हीं में से एक है मां के लूटे हुए ख़जाने का दोबारा कांगड़ा वापस लाया जाना है। दरअसल, कांगड़ा के मशहूर नगरकोट धाम शक्तिपीठ की ख़ासियत ये है कि इसे उत्तर भारत के अमीर मंदिरों की सूची में शुमार किया जाता है। यहां हर साल करोड़ों का न केवल चढ़ावा चढ़ता है, बल्कि सैकड़ों श्रद्धालु यहां सोने और चांदी के बेशकीमती गहने भी मां देवी के दरवार में अर्पित करके जाते हैं।
मंदिर का खजाना लूटा था
ऐसे में कहा ये जाता है कि 17वीं शताब्दी में जब देश मुहम्मद गोरी भारत के मंदिरों को लूट रहा था. उस वक्त मुहम्मद गोरी ने कांगड़ा के इस मंदिर को भी नहीं छोड़ा और यहां चांदी के बने हुए मंदिरों के कपाटों समेत मंदिर के सोने को लूटकर वो काबुल ले गया, मगर महाराजा रणजीत सिंह देवी मां की प्रेरणा से उसी लूटे हुए खजाने को दोबारा हासिल कर लिया और वो खजाना और कपाट आज भी देवी के दरबार की शोभा बढ़ा रहे हैं। मंदिर पुजारी इसे मां की ही महिमा का एक भाग समझते हैं।

तीन धर्मों की एकता का प्रतीक
मां बज्रेश्वरी देवी के मंदिर परिसर में पहुंचते ही सबसे पहले श्रद्धालुओं की नजर मंदिर के स्ट्रक्चर पर जाती है, जिसकी कारीगरी में कोई अजब करिश्मा नहीं बल्कि वो रहस्य है. मंदिर का स्ट्रक्चर तीन धर्मों के पूजाघरों को जोड़कर बनाया गया है। श्रद्धालू भक्त मंदिर गर्भगृह से करीब पचास फीट पहले यानी मंदिर के मुहाने में एंट्री मस्जिद से करते हैं। फिर दस फीट के बाद वहीं गुरुद्वारे की छत के नीचे होते हैं और फिर जाकर मंदिर की छत के तले आते हैं। इस मंदिर को सर्वधर्म एकता मंदिर के तौर पर भी देखा जाता है।
छमूकांगड़ा के मशहूर नगरकोट धाम शक्तिपीठ की ख़ासियत ये है कि इसे उत्तर भारत के अमीर मंदिरों की सूची में शुमार किया जाता है। कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह भी देवी मां को अपनी कुलदेवी के तौर पर देखते थे तो वहीं कश्मीर में रहने वाला एक विशेष मुस्लिम समुदाय भी इस देवी में अपनी अथाह आस्था रखता है और यहां 80 के दशक से पहले हर साल दर्शनों के लिए आया करते थे. मगर वक्त के साथ अब मुस्मिल समुदाय की आवाजाही कम देखी गई है जबकि सिख समुदाय के लोग आज भी भारी तादाद में आते हैं।
श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व
श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर का मुख्य आयोजन घृत पर्व ही होता है। यह साल में एक बार मकर संक्रांति के दौरान ही मनाया जाता है। घृत मंडल पर्व के आयोजन के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं। इन घावों को ठीक करने के लिए माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। कहा जाता है कि उस दौरान देवी-देवताओं ने देसी घी को एक सौ एक बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाया था और उसे माता के शरीर पर आए घावों पर लगाया था। इस परंपरा को शुरू होने का सही उल्लेख तो नहीं मिलता है, लेकिन सदियों से इसका निर्वहन किया जा रहा है। मक्खन से मां का सजाने के बाद फल और मेवों से इस पिंडी का श्रृंगार किया जाता है।
101 बार ठंडे पानी से धोकर तैयार किया जाता है मक्खन
मक्खन से मां का श्रृंगार अद्भुत होता है लेकिन घी से मक्खन तैयार करने की प्रक्रिया भी किसी तप से कम नहीं है। मक्खन से घी तैयार करते तो आपने सुना और देखा भी होगा, लेकिन घी से मक्खन तैयार करना सभी को अचंभित करने वाला पल होता है। देसी घी को 101 बार ठंडे जल में रगड़-रगड़ बनाया जाता है। इसे तैयार करने में पुजारियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।घृत मंडल पर्व शुरू होने से आठ दिन पहले ही घी से मक्खन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
चर्म रोगों के लिए रामबाण
मान्यता है कि शरीर के चर्म रोगों और जोड़ों के दर्द में लेप करने के लिए यह प्रसाद रामबाण का काम करता है। मकर संक्रांति पर्व पूरे देश के साथ-साथ कांगड़ा के नगरकोट धाम में भी मनाया जाता है। इस पर्व पर बज्रेश्वरी मंदिर कांगड़ा में घृतमंडल तैयार किया जाता है। गर्भगृह से लेकर प्रांगण तक मां के दिव्य भवन में मां के भक्तों का तांता लगा रहता है। यह परंपरा देवीय काल से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी के इतिहास से संबंधित है।
सात दिन तक मां की पिंडी पर चढ़ा रहता है मक्खन
घृतमंडल पर्व मकर संक्रांति से लेकर सात दिन तक चलता है। इस दौरान लोग मंदिर में माता के इसी रूप का दीदार करते हैं। सात दिन बाद इस मक्खन को माता की पिंडी से उतारा जाता है। उसके बाद इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मान्यता है कि माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ने के बाद यह औषधि बन जाता है। लोग इसे व्याधि या अन्य चर्म रोगों को दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं, लेकिन इसे खाने के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। मंदिर के पुजारी पंडित राम प्रसाद के अनुसार इस मक्खन रूपी प्रसाद से धाव, फोड़े आदि पर लगाने से उनका उपचार हो जाता है। प्रदेश सहित अन्य राज्यों के हजारों श्रद्धालु प्रसाद लेने के लिए पहुंचते हैं।
1905 में ध्वस्त हो गया था पांडवों द्वारा बनाया मंदिर
महाभारतकाल में पांडवों को दुर्गा देवी ने स्वप्न दिया था कि नगरकोट गांव में खुद को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो उन्हें यहां मंदिर बनाना होगा। अन्यथा नष्ट हो जाओगे। उसी रात पांडवों ने नगर कोट गांव में मां बज्रेश्वरी का शानदार मंदिर बनावाया। यह मंदिर 1905 में आए विनाशकारी भूकंप ने नष्ट कर दिया बाद में नए मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के गुंबंद सभी धर्मों को अपने में समेटे हुए हैं।

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