इंदौर शहर में शनिदेव का एक ऐसा प्राचीन शनि मंदिर है, जहां स्वयं न्याय के देवता प्रकट हुए थें साथ ही यहां शनिदेव का सोलह शृंगार भी किया जाता है. इंदौर के प्राचीन जूनी शनि मंदिर में शनिदेव पर तेल के अलावा दूध और जल भी चढ़ाया जाता हैं वैसे तो यहां रोजाना ही भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन शनिवार को यहां पूजा-अर्चना करने इंदौर के अलावा दूर दराज से भी भक्त आते हैं
भक्तों की मान्यता है कि यहां आकर उनके जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं और शनि के प्रकोप से निजात मिल जाती हैं मंदिर के मुख्य पुजारी नीलेश तिवारी ने बताया कि यह मंदिर देश के सबसे प्राचीनतम शनि मंदिरों में से एक हैं भगवान शनि न्याय के देवता हैं, जब कोई गलत काम करता है तो शनि भगवान उसको दंड भी देते हैं यही कारण है कि इस मंदिर में शनि देव के क्रोध को शांत करने के लिए उनका राजसिक श्रृंगार किया जाता है और मंदिर में शनि भगवान शीतल स्वरूप में विराजमान हैं
500 साल पहले था टीला
इस मंदिर में शनि देव का विशेष अभिषेक सरसों के तेल के अलावा प्रातः काल में दूध और जल से किया जाता हैं प्रतिमा का सिंदूर से भी शृंगार किया जाता हैं। मंदिर के निर्माण को लेकर एक किवदंती प्रचलित है, जिसके अनुसार मंदिर के स्थान पर करीब 500 साल पहले 20 फीट ऊंचा एक टीला था। यहां पर वर्तमान पुजारी के एक पूर्वज गोपालदास तिवारी रहते थे। वह जन्म से ही देख नहीं सकते थे। एक दिन शनिदेव ने उनके सपने में आकर उन्हें बताया कि टीले के नीचे मेरी प्रतिमा है। चूंकि गोपालदास देखने में असमर्थ थे तो उन्होंने शनिदेव से कहा, ‘हे प्रभु, मैं तो देखने में असमर्थ हूं। मैं आपकी प्रतिमा को कैसे देख सकता हूं’.
लौट आई आंखों की रोशनी
पुजारी के अनुसार, शायद भगवान यह बात पहले ही समझ चुके थे. गोपाल दास के स्वप्न से जागते ही जैसे ही उन्होंने आंखें खोली तो उनकी आंखों की रोशनी फिर से लौट आई। इस चमत्कार को देखकर आस-पास के लोगों को भी गोपाल दास की बात पर यकीन हो गया। उसके बाद सभी ने उस टीले को खोदा और शनि महाराज की प्रतिमा को वहां से निकाला. कहा जाता है कि आज भी वही प्रतिमा मंदिर में स्थापित है।

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