= इस पर्वत शिला पर पूर्वज सीधे ग्रहण कर लेते हैं पिंड

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि इस दौरान सभी अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान कर उन्हें मृत्युलोक से मुक्ति दिलाते हैं। वहीं देशभर में पींडदान के कई स्थान हैं जिनमें से बिहार का गया इन सभी स्थानों में सबसे प्रमुख माना जाता है। पटना से करीब 104 किमी की दूरी पर स्थित गया एक प्राचीन धार्मिक नगरी है। धार्मिक मान्यता है कि गया में श्राद्ध, पिंडदान आदि से मृत व्यक्ति की आत्मा को मृत्युलोक से मुक्ति मिल जाती है।
श्राद्ध पक्ष इस साल 2 सितंबर से शुरु हो चुका हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस समयकाल में पिंडदान के प्रमुख स्थान गया में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। कहा जाता है की पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्माएं स्वयं धरती पर आती हैं और अपने परिवार के लोगों को अपने आस-पास होने का अहसास कराती है। वहीं गया के पास एक बहुत ही प्राचिन व रहस्यों से भरी एक प्रेतशिला है। माना जाता है की यहीं से पितृ श्राद्ध पक्ष में आते हैं और पिंड ग्रहण कर फिर यहीं से परलोक चले जाते हैं। आइए जानते हैं प्रेतशीला से जुड़ी कुछ रोचक बातें…

  1. गया के पास प्रेतशिला नाम का 876 फीट ऊंचा एक पर्वत है। इस रहस्यमय पर्वत प्रेतशिला के बारे में कहा जाता है कि यहां पूर्वजों के श्राद्ध व पिंडदान का बहुत अधिक महत्व है। मान्यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करन से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण कर लेते हैं और उन्हें कष्टदायी योनियों में जन्म नहीं लेना पड़ता।
  2. प्रेतशिला के बारे में कहा जाता है की यह लोक और परलोक के बीच की एक ऐसी कड़ी है जो दुनिया में रहस्य पैदा करती है। बताया जाता है कि प्रेतशीला के पास के पत्थरों में एक विशेष प्रकार की दरारें और छेद हैं। जिनके माध्यम से पितृ आकर पिंडदान ग्रहण करते हैं और वहीं से वापस चले जाते हैं।
  3. सूर्यास्त के बाद ये आत्माएं विशेष प्रकार की ध्वनि, छाया या फिर किसी और प्रकार से अपने होने का अहसास कराती हैं। ये बातें यहां आस्था और विज्ञान से जुड़ी बातों पर आधारित हैं। न ही इन्हें झुठलाया जा सकता है और न ही इन्हें सर्वसत्य माना जा सकता है।
  4. इस प्रेतशिला के पास एक वेदी है जिस पर भगवान विष्णु के पैरों के चिह्न बने हुए हैं। इसके पीछे की एक प्रमुख कथा बताई गई है जिसके अनुसार यहां गयासुर की पीठ पर बड़ी सी शिला रखकर भगवान विष्णु स्वयं खड़े हुए थे। बताया जाता है कि गयासुर ने ही भगवान से यह वरदान पाया था कि यहां पर मृत्यु होने पर जीवों को नरक नहीं जाना पड़ेगा। गयासुर को प्राप्त वरदान के कारण से ही यहां पर श्राद्ध और पिंडदान करने से आत्मा को मुक्ति मिल जाती है।

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