कभी रुला देती है ये जिंदगी, कभी हंसा देती है ये जिंदगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बड़ी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी मौन रहती है ये जिंदगी, कभी शब्दों का शैलाब लाती है जिन्दगी।
क्या खूब है जिन्दगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी लोगों को प्रकाश देती है जिन्दगी, कभी खुद अन्धकार मे रहती है ये जिंदगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बड़ी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी गंगा की तरह पवित्र है जिन्दगी, तो कभी कीचड की तरह मलीन है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बड़ी अजीव है ये जिंदगी।।
कभी बचपना देकर नादान बनाती है जिन्दगी, तो कभी जिम्मेदारिओं मे तनहा ढकेलती है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी कांटो से कतराती है जिन्दगी, तो कभी कांटो मे खिलती है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी हमदर्द है जिन्दगी, तो कभी बेदर्द है जिन्दगी।
क्या खूब है जिन्दगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी सम्मान देकर दुखी है जिन्दगी, तो कभी अपमानित होकर खुश है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बड़ी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी समुंदर की तरह असीमित है जिन्दगी, तो कभी नदियों की तरह सीमित है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बड़ी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी दर्पण में तस्वीर दे जाती है जिन्दगी, तो कभी दर्पण में दरार कर जाती है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी आंसू बहाने का अधिकार देती है जिन्दगी, तो कभी आंसू पोछने का अधिकार छीन लेती है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी बागों की तरह रंगीन है जिन्दगी, तो कभी बंजर की तरह बीरान है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
कभी महफिल मे खुश है जिन्दगी, तो कभी महफिल से दुखी है जिन्दगी।
क्या खूब है ये जिंदगी, बडी अजीब है ये जिंदगी।।
लेखिका : साधना शुक्ला (गोला-खीरी)

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