मेरी जुबान चुनाव डेस्क
2024 में आजाद भारत के 18वें लोकसभा चुनाव होने हैं। पिछले 16 लोकसभा चुनावों में देश के साथ-साथ हमारी संसद में भी काफी बदलाव आए हैं। लोकसभा की बात करें तो कुछ मायनों में स्थिति सुधरी लेकिन कुछ में हालात और बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है। अब लोकसभा में पहले के मुकाबले ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं, लेकिन दूसरी तरफ यह बात परेशान करती है कि फिर भी काम के घंटे कम हुए हैं और महिलाओं की भागीदारी भी उतनी तेजी से नहीं बढ़ी है। चलिए अबतक आए प्रमुख परिवर्तनों पर नजर डालते हैं।
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औसत उम्र बढ़ी

1951 की लोकसभा में औसत उम्र 46.5 साल थी जो 16वीं लोकसभा में 56 साल तक पहुंच गई। यह दूसरा सबसे उम्रदराज सदन रहा। 2009 में हमारे 43 प्रतिशत सांसद 56 या उससे ज्यादा उम्र के थे। उस वक्त औसत उम्र 57.9 थी। वहीं पहली लोकसभा में कोई भी सांसद 70 के पार नहीं था। लेकिन 2014 में यह 7 प्रतिशत पर आ गया। 40 साल से नीचे के सांसद भी पहली लोकसभा के मुकाबले 26 प्रतिशत कम हुए।
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पढ़ाई का स्तर बढ़ा

लोकसभा में पढ़ाई का स्तर पहले से बढ़ा है। 1952 में 23 प्रतिशत सांसद ऐसे थे जिन्होंने 10 तक भी पढ़ाई नहीं की थी। वहीं 16वीं लोकसभा में 75 प्रतिशत सांसद ग्रेजुएट थे। सिर्फ 13 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्होंने मैट्रिक पास नहीं की है।
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महिलाओं की भागीदारी बढ़ी पर चिंता बरकरार

2014 के चुनाव में 62 महिलाएं (11.4 प्रतिशत) लोकसभा पहुंची। यह आंकड़े पहली लोकसभा (24 महिलाएं) से बेहतर हैं, लेकिन फिर भी चिंताजनक हैं। पड़ोसी देश नेपाल (29.6), बांग्लादेश (20.3), पाकिस्तान (20.0) भी इस मामले में भारत से आगे थें।
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काम के घंटे कम हुए

16वीं लोकसभा में कुल 1,615 घंटे काम हुआ। यह 15वीं लोकसभा के मुताबिक 20 प्रतिशत ज्यादा था लेकिन अगर अब तक लोकसभा में काम के कुल घंटों का औसत (2,689 घंटे) निकाला जाए तो यह 40 फीसदी कम है। लोकसभा की कार्यवाही कुल 331 दिन हुई जो कि पूर्णकालिक लोकसभाओं के औसत से 137 दिन कम है।

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