ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर 772 साल पुराना है. बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बने इस मंदिर को देखने के लिए दुनियाभर से सैलानी आते हैं। इस मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है।
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी में है। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1250 ई. में गांग वंश राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था। अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा है कि राजा नरसिंह देव ने 12 साल के पूरे राजस्व को मंदिर के निर्माण में लगा दिया था।

यह विशाल मंदिर मूलतः चौकोर (865 गुणे 40 फुट) प्राकार से घिरा था जिसमें तीन ओर ऊँचे प्रवेशद्वार थे। मंदिर का मुख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है और इसके तीन प्रधान अंग – देउल (गर्भगृह), जगमोहन (मंडप) और नाटमंडप – एक ही अक्ष पर हैं। सबसे पहले दर्शक नाटमंडप में प्रवेश करता है। यह विभिन्न अलंकरणों और मूर्तियों से विभूषित ऊँची जगती पर अधिष्ठित है जिसकी चारों दिशाओं में सोपान बने हैं। पूर्व दिशा में सोपानमार्ग के दोनों ओर गजशार्दूलों की भयावह और शक्तिशाली मूर्तियाँ बनी हैं। नाट्यमंडप का शिखर नष्ट हो गया है, पर वह निःसंदेह जगमोहन शिखर के आकार का रहा होगा। उड़ीसा के अन्य विकसित मंदिरों में नाट्यमंडप और भोगमंदिर भी एक ही अक्ष में बनते थे जिससे इमारत लंबी हो जाती थी। कोणार्क में नाटमंडप समानाक्ष होकर भी पृथक् है और भोगमंदिर अक्ष के दक्षिणपूर्व में है; इससे वास्तुविन्यास में अधिक संतुलन आ गया है।

कलिंग शैली में बना है मंदिर, रथ में हैं सात घोड़े और 12 जोड़ी पहिए
इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ऐसे बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है। यह मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है और इसकी संरचना रथ के आकार की है। रथ में कुल 12 जोड़ी पहिए हैं। एक पहिए का व्यास करीब 3 मीटर है। इन पहियों को धूप धड़ी भी कहते हैं। क्योंकि ये वक्त बताने का काम करते हैं। इस रथ में सात घोड़े हैं, जिनको सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक माना जाता है।
12 साल से भी ज्यादा वक्त में बना था मंदिर, नदी में कूद गया था कारीगर
कोणार्क सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो मूर्तियां हैं, जिसमें सिंह के नीचे हाथी है और हाथी के नीचे मानव शरीर है. मान्यता है कि इस मंदिर के करीब 2 किलोमीटर उत्तर में चंद्रभागा नदी बहती थी जो अब विलुप्त हो गई है। ऐसी कहावत है कि इस मंदिर के निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक काम किया लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया। इसके बाद मुख्य शिल्पकार दिसुमुहराना के बेटे धर्मपदा ने निर्माण पूरा किया और मंदिर बनने के बाद उन्होंने चंद्रभागा नदी में कूदकर जान दे दी।
इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से हुआ है. कोणार्क शब्द दो शब्दों कोण और अर्क से मिलकर बना हुआ है जिसमें अर्क का अर्थ सूर्यदेव है. इस मंदिर में भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं। यह मंदिर जगन्नाथ पुरी से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को साल 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।

मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप मिलने के कारण कुष्ठ रोग हो गया था. जिससे निजात पाने के लिए साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के संगम पर कोणार्क में बारह साल तक तपस्या की। इसके बाद सूर्य देव ने उन्हें इस रोग से मुक्त किया। तब उन्होंने इस जगह पर सूर्य देव का मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया और नदी में स्नान के दौरान उन्हें सूर्य देव की एक प्रतिमा मिली। ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की इस प्रतिमा को विश्वकर्मा ने बनाया था। इसी मूर्ति को साम्ब ने स्थापित किया।
रथ का महत्व
यह मंदिर समय की गति को दर्शाता है। इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है। इस रथ में 12 जोड़ी पहिए लगे हुए हैं। साथ ही इस रथ को 7 घोड़े खींचते हुए नजर आते हैं। यह 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं। कहीं-कहीं इन 12 जोड़ी पहियों को दिन के 24 घंटों के रूप में भी देखा जाता है। इनमें से चार पहियों को अब भी समय बताने के लिए धूपघड़ी की तरह इस्तेमाल किया जाता है। मंदिर में 8 ताड़ियां भी हैं जो दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं।

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