चार धाम यात्रा का महत्पपूर्ण हिस्सा है केदारनाथ। यहां शिव जी की आराधना की जाती है। ये बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने मात्र से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज हम आपको केदरनाथ धाम से जुड़ी कुछ ऐसी चौंकाने वाली बातों के बारे में बताएंगे, जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे।
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।

जून 2013 के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर के आसपास की मकानें बह गई। इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा एवं सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी पहेली है।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र “मंदाकिनी नदी“ का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है। जानें केदारनाथ से जुड़ी नौ दिलचस्प बातें, इस जगह बैल के रूप में भोलेनाथ ने दिए थे दर्शन।
1.केदारनाथ में भू-शिवलिंग की पूजा की जाती है। बताया जाता है कि यहां शिवलिंग की उत्पत्ति अपने आप जमीन से हुई थी। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। यहां शिव जी ने उन्हें बैल के रूप में दर्शन दिए थे।
2.केदारनाथ का मंदिर हमेशा बर्फ से ढका रहता है। यहां के खराब मौसम के चलते मंदिर के कपाट छह महीने तक के लिए बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर बंद करने से पहले पुजारी विग्रह और दंडी को नीचे ले जाते हैं।
3.इसके बाद मंदिर परिसर की सफाई करके वहां एक दीपक जला देते हैं। हैरानी की बात यह है कि मंदिर छह महीने बंद रहने के बावजूद इसके दोबारा खोलने पर भी दीया वैसे ही जलता हुआ दिखाई देता है।
4.मंदिर में एक छोटाकृसा दीया छह महीने तक लगातार कैसे जलता है इस बात को लेकर सब हैरान हैं। क्योंकि मंदिर के पुजारियों के अनुसार केदारनाथ के कपाट शीत काल में बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद ये दीपावली के दूसरे दिन ही खुलता है। इस बीच ज्यादा ठंड होने के चलते वहां परिंदा तक पर नहीं मार सकता है।
5.मंदिर की एक और बात बड़ी हैरान करने वाली है कि वहां भगवान शिव आज भी भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं। इसीलिए उन्हें जागृत महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
6.पुराणों के अनुसार शिव जी का एक भक्त बड़ी मुश्किलों को पार करके केदारनाथ पहुंचा था, लेकिन नियम के मुताबिक मंदिर के कपाट छह महीने के लिए बंद कर रहे थे। तब उन्होंने भक्त से मंदिर के कपाट दोबार खुलने पर आने की बात कही।
7.पुजारियों की बात सुनकर भक्त ने वहां से जाने के लिए मना कर दिया और शिव जी के दर्शन करने पर अड़ गया। वो वहीं भूखा-प्यासा बैठा रहा। मगर मंदिर के कपाट बंद हो गए। तभी भक्त को अचानक नींद आ गई और वो छह महीनों तक सोता रहा।
8.बताया जाता है कि जब वो भक्त सो रहा था तब उसे एक वैरागी ने दर्शन दिए। इसके बाद जब वो सोकर उठा तब उसने देखा कि मंदिर के कपाट खुल रहे हैं। मंदिर के पुजारी भी उसे पहचान गए।
9.तब लोगों में आश्चर्य हुआ कि भोलेनाथ से मिलने आया ये व्यक्ति दर्शन के लिए इतना बेचैन था कि उसे शिव जी ने खुद साक्षात दर्शन दिए हैं और वो मंदिर खुलने पर दर्शन कर सके इसके लिए उन्होंने उसे छह महीनों के लिए सुला दिया। शिव जी की इसी महिमा के चलते उन्हें जागृत महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

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