देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में उसका सबसे बडा राज्य, उत्तर प्रदेश, वर्तमान में भाजपा का संपूर्ण देश में सबसे बडा राजनीतिक संबल बना हुआ है। विशेष रूप से हिमांचल प्रदेश, कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में भाजपा की स्पष्ट पराजय एवं पंजाब के चुनावों में उसके गठबंधन की पूर्ण पराजय तथा राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, मिजोरम राज्यों के निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के बन रहे परिदृश्य के आलोक में लगभग उन सभी राज्यों में भाजपा के लिये कुछ भी पाने की आस शेष न रहने के बाद आगामी लोकसभा चुनावों में बहुमत के आंकडे को प्राप्त कर सकना अत्यन्त दुष्कर होते जाने को सामने रखते हुये उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन बहुत अधिक मायने रखता है। जहां 80 कुल लोकसभा सीटों में से 62 पर भाजपा, 02 पर उसकी सहयोगी अपना दल (एस) का कब्जा है। जबकि बहुजन समाजपार्टी के पास 10 एवं समाजवादी पार्टी सिर्फ 05 और काग्रेस केवल एक सीट ही जीत सकी थी। यह अलग तथ्य है कि बहुजन समाजपार्टी और सपा को मिलकर चुनाव लडने का सबसे बडा लाभ बसपा को ही सीटों के रूप में 2019 के लोकसभा चुनावों में हुआ था। जबकि 2022 के विधानसभा चुनावों में उक्त गठबंधन टूटने के बाद बसपा का सिर्फ एक विधायक निर्वाचित हो सका था और उसने भी बाद में पार्टी को छोड दिया था। स्वाभाविक है कि आगामी लोकसभा चुनावों में बसपा उत्तर प्रदेश में लगभग पूरी तरह से समाप्त हो जायेगी। भले ही राज्य स्तर के राजनीतिक दल के रूप में मान्यता को बनाये रखने लायक मत उसे मिल जायें। जबकि अपनी राष्ट्रीय दल की भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदत्त मान्यता को वह पहले ही खो चुकी है।
इस राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर प्रदेश में अगर कोई राजनीतिक दल भाजपा को सीधी चुनौती देने की स्थिति में दिखाई देता है, तो वह केवल समाजवादी पार्टी ही है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के फलदायक, सक्रिय राजनीतिक प्रयासों का लाभ न केवल हिमांचल, कर्नाटक जैसे राज्यों में उसके सत्ता में आने के लिये सहयोगी साबित हुआ, अपितु उसके चलते उसकी लोकप्रियता में भी आशातीत वृद्धि हुई है। विशेष रूप से राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधी चुनौती देने वाले एकमात्र विपक्षी नेता की छवि न केवल पूरी तरह से स्थापित कर चुके हैं, अपितु उनकी जनस्वीकार्यता भी प्रधानमंत्री की तुलना में लगभग दोगुनी गति से बढ़ने का संकेत भी विभिन्न सर्वे के परिणामों से सुस्पष्ट रूप से दर्शित होता है।
परन्तु यह भी उत्तर प्रदेश की राजनीति का धरातलीय सत्य है कि कांग्रेस इस राज्य में अपना संगठनात्मक ढांचा पूरी तरह से खो चुकने के कारण स्वयं को भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी के रूप में स्थापित कर सकने में फिलहाल आगामी लोकसभा चुनावों तक कतई सफल होने की स्थिति में नहीं है।
ऐसे मेंं केवल समाजवादी पार्टी ही उत्तर प्रदेश राज्य मेंं एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी बचती है, जो भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में सीधी टक्कर दे सकने का विपक्ष का प्रमुखतम्चेहरा बन सके और जिसको जनता की स्वीकार्यता भी प्राप्त हो। सपा ही एकमात्र विपक्षी दल है जिसके पास संपूर्ण उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ सकने लायक प्रभावी संगठनात्मक ढांचा, सक्रिय कार्यकर्ताओं का समूह और आवश्यक वित्तीय क्षमतायें उपलब्ध हैं। उसके अतिरिक्त किसी अन्य विपक्षी दल का कोई आधार नहीं है।
फिर भी प्रमुख प्रश्न यह उठ रहा है कि जिस तरह से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वर्ष 2017 एवं तत्पश्चात 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में और उसके उपरांत अब तक के समय में पार्टी संगठन को संचालित करते आ रहे हैं, क्या उससे सपा प्रदेश की जनता का इस स्तर तक विश्वास अर्जित कर सकने में सफल हो सकेगी, जो उसे लोकसभा में एक बार फिर से उसी स्तर पर पहुंचा सके, जिस संख्या में उसके सांसद प्रखर समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के समय में थे ? अखिलेख यादव के नेतृत्व में सपा प्रदेश के आम जनों के समक्ष सत्ता उत्पीडन एवं भारी भरकम भ्रष्टाचार, सरकारी अमले की लूट-खसोट, पुलिस अत्याचार, सरकारी आतंक के राज्य की स्थापना के प्रयासों, बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, घटते औ़द्योगिक उत्पादन, उद्योगों के बंद होने की बढ़ती संख्या, पिछडों, अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की छात्रवृत्ति राशि को भी राज्य सरकार द्वारा जारी न किये जाने, राज्य की बदहाल होती शिक्षा-चिकित्सा व्यवस्था के बारे में सड़कों पर आकर, मुखर आन्दोलनों के माध्यम से आम आदमी को यह विश्वास दिला सकने में कदापि भी सफल नहीं हो सकी है कि उसकी समस्याओं के लिये सपा अंतिम सांस तक पूरी तरह से लड़ने के लिये प्रतिबद्ध है।
पूर्व मुख्यमंत्री व सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की अब तक की कार्यशैली एक एरिस्ट्रोक्रेट राजनेता की ही रही है। जो कि उनके आस्ट्रेलिया में शिक्षित एक इंजीनियर होने के नाते पूर्ण स्वाभाविक भी है। लेकिन किसी भी जन समस्या को केवल ट्वीट के माध्यम से उठाने का वास्तविक असर उत्तर प्रदेश राज्य के सिर्फ दो प्रतिशत से अधिक लोगों पर कतई नहीं पडता और हमें यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि उस वर्ग के नाममात्र लोगों को छोडकर कोई भी समाजवादी पार्टी के उद््देश्यों का संवाहक और उसकी नीतियों के कदापि भी समर्थक नहीं है। जिनके समर्थन का कोई वास्तविक राजनीतिक लाभ मिल सकना संभव नहीं दिखता।
समाजवादी पार्टी को अपना खोया जनसमर्थन फिर से वापस प्राप्त करने के लिये उसी रास्ते को तुरंत से अपनाने की नितांत अनिवार्य आवश्यकता है, जिसे अपनाते हुये मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी आन्दोलन के नेताओें-कार्यकर्ताओं ने विगत दशकों में जनसमस्याओं को लेकर संपूर्ण प्रदेश के गांव-गांव और शहरी क्षेत्रों के गली-कूंचों तक में आन्दोलनों-विरोध प्रर्दशनों की झड़ी लगाकर आम जन को पूरी तरह से यह विश्वास दिलाने का कार्य सफलतापूर्वक किया था कि उनके हितों का प्रमुखतम् संरक्षक समाजवादी आन्दोलन ही है और देश में लोकतंत्र को बनाये रखने तथा जन-अधिकारों, सविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के पूर्णरूपेण संरक्षण एवं समाज में व्यापत कुरीतियों, अंधविश्वास को दूर करके वैज्ञानिक सोंच को बढ़ाने सहित देश-प्रदेश के सभी लोगों के लिये पूर्णतः निःशुल्क शिक्षा, चिकित्सा को प्रदान करना पूर्णरूपेण सुनिश्चित करना एक कल्याणकारी राज्य का अनिवार्य उत्तरदायित्व है। जिसे हमारी वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने तो पूरी तरह से विलुप्त कर दिया है।
अब यह देखने का विषय है कि जनपद : लखीमपुर-खीरी के सुप्रसिद्ध, ऐतिहासिक तीर्थस्थल देवकली में दिनांक : 05-06 जून, 2023 को आयोजित ‘‘समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर’’ में उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा प्रमुख समाजवादी राजनीतिक विचारक एवं समाजवादी आन्दोलन की ध्वजा को फहराने में स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के प्रमुखतम् साथी-सहयोगी एवं युगपुरूष, सुप्रसिद्ध किसान नेता तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के अति विश्वास प्राप्त सपा के वर्तमान मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं को समाजवादी आन्दोलन को आगे बढ़ाने तथा सपा को मजबूती प्रदान कर सांप्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति को परास्त करने के लिये कौन-कौन सी शिक्षायें एवं मूल मंत्र प्रदान करते हैं और सपा कार्यकर्ता उन्हें किस प्रकार से और कितना ग्रहण कर उनके अनुसार अपना राजनीतिक कार्यक्रम भविष्य में संचालित करते हैं। क्योंकि वास्तविक परिणाम का आंकलन केवल उसके आधार पर किया जाना ही संभव है।
उमाशंकर पटवा संपादक.

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